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Monday, August 26, 2013

सौगंद राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएगे...



सौगंद राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएगे...

अल्लाहो अक्बर, हम भी नमाज़ वही बजाएगे...

 


चाहे कुछ भी होजाए, कदम न पीछे हटाएगे...
 
बच्चे मरे या लाज लुटे, हम तो येही गाएँगे...
 
सौगंद राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएगे...
 
अल्लाहो अक्बर, हम भी नमाज़ वही बजाएगे...
 

एक सुहाग लुटा, एक मांग उजढ़ी...
 
एक बाप मरा, पर हमको क्या...
 
जो होता है हो जने दो...
 
पर हम तो येही गाएँगे...
 
सौगंद राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएगे...
 
अल्लाहो अक्बर, हम भी नमाज़ वही बजाएगे...
 

एक इस्मत लुटी, एक माँ बिछडी...
 
वो मेरी कबथी, वा भइ वा...
 
कौन इस पर विचार करे...
 
हम तो बस येही गाएँगे...
 
सौगंद राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएगे...
 
अल्लाहो अक्बर, हम भी नमाज़ वही बजाएगे...
 

मस्जिद मे मैं तो नमाज़ पढ़ू...
 
फिर तौबा उससे येही करूँ...
 
या अल्लाह मुजकों माफ करे...
 
मगर ये तो भूल न जाएगे...
 
सौगंद राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएगे...
 
अल्लाहो अक्बर, हम भी नमाज़ वही बजाएगे...
 

राम मेरे कष्टों को हरले...
 
जीवन मेरा उजवल करदे...
 
मंदिर मे दीप जलूँगा...
 
परंतु गाना यही गाऊँगा...
 
सौगंद राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएगे...
 
अल्लाहो अक्बर, हम भी नमाज़ वही बजाएगे...



(नदीम नक़्वी, दिल्ली, भारत)

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